व्लादिमीर पुतिन का जीवन किसी फिल्म की कहानी जैसा लगता है। बचपन में चूहे भगाने से लेकर दुनिया की सबसे ताकतवर कुर्सी तक पहुंचने का सफर संघर्ष, अनुशासन और सख्त फैसलों से भरा है। पुतिन आज रूस के राष्ट्रपति हैं, लेकिन उनकी कहानी जासूसी, युद्ध और राजनीति के लंबे दौर से निकलकर यहां तक पहुंची है।
युद्ध के साए में गुजरा बचपन
1952 में लेनिनग्राड (आज का सेंट पीटर्सबर्ग) में जन्मे पुतिन ऐसे शहर में बड़े हुए जिसे दूसरे विश्व युद्ध ने बुरी तरह तोड़ दिया था। युद्ध के दौरान लाखों लोग मारे गए और शहर पूरी तरह तबाह हो गया। पुतिन तीन भाइयों में सबसे छोटे थे, लेकिन उनके जन्म से पहले ही दोनों भाइयों की मौत हो चुकी थी। पिता नेवी में थे और मां फैक्ट्री वर्कर थी। घर और आसपास का इलाका गरीबी और बदहाली से घिरा रहता था।
जहां वे रहते थे, वहां चूहों का आतंक था। पुतिन का बचपन इन्हें भगाने में ही निकल जाता था। इसी माहौल से निकलने के लिए पुतिन ने माता-पिता की इच्छा के खिलाफ जाकर जूडो सीखना शुरू किया। जल्द ही वे जूडो और हॉर्स राइडिंग दोनों में दक्ष हो गए।
स्पाई फिल्मों से पैदा हुआ जासूस बनने का सपना
स्कूल के दिनों में पुतिन की दिलचस्पी किताबों और सिनेमा में रही। एक स्पाई फिल्म ने पुतिन को इतना प्रभावित किया कि बचपन से ही उन्होंने तय कर लिया कि वे जासूस बनेंगे। नौवीं क्लास में ही वे KGB दफ्तर पहुंचकर नौकरी मांगने लगे, जहां उन्हें बताया गया कि इंटेलिजेंस ऑफिसर बनने के लिए लॉ की डिग्री जरूरी है।
इसी सलाह को मानते हुए पुतिन ने 1970 में लेनिनग्राड स्टेट यूनिवर्सिटी में लॉ पढ़ना शुरू किया और 1975 में डिग्री पूरी की।
KGB में एंट्री और जर्मनी में गुप्त ऑपरेशन
डिग्री पूरी होते ही पुतिन का सपना सच हुआ और उन्हें KGB में नौकरी मिल गई। यह उनके लिए जीवन का सबसे बड़ा मौका था। 10 साल तक लेनिनग्राड में सेवा देने के बाद 1985 में उन्हें ईस्ट जर्मनी भेजा गया, जहां वे ट्रांसलेटर और इंटेलिजेंस ऑफिसर के रूप में काम करते थे।
उस समय जर्मनी दो हिस्सों में बंटा हुआ था। ईस्ट जर्मनी सोवियत प्रभाव में था और वहां होने वाली गतिविधियों पर नजर रखना KGB के लिए बेहद अहम था। पुतिन का काम और उनकी तेज सोच जल्द ही पूरे संगठन में चर्चा का विषय बन गई।
सोवियत यूनियन के विघटन ने बदल दी सोच
1989 में बर्लिन की दीवार गिरने और फिर सोवियत यूनियन के टूटने ने पुतिन को गहराई से प्रभावित किया। वह ईस्ट जर्मनी से वापस रूस लौट आए। कई बार उन्होंने कहा कि USSR का टूटना 20वीं सदी की सबसे बड़ी भू-राजनीतिक गलती थी। इसी दौर ने पुतिन के अंदर रूस को दोबारा मजबूत बनाने का विचार और पक्का कर दिया।
जासूस से राष्ट्रपति तक का सफर
सोवियत यूनियन के विघटन के बाद रूस की राजनीति और सिस्टम में बड़े बदलाव आए। पुतिन धीरे-धीरे राजनीति में सक्रिय हुए और अपनी सख्त इमेज, तेज फैसलों और रणनीतिक सोच के कारण तेजी से आगे बढ़ते गए।
बीते 25 सालों में वे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों पद संभाल चुके हैं और लगातार रूस की सबसे प्रभावशाली शख्सियत बने हुए हैं। पश्चिमी देशों की पाबंदियां हों या NATO का दबाव, पुतिन की नीतियां हमेशा चर्चा में रहती हैं। रूस के लिए उन्होंने राष्ट्रीय हित और सुरक्षा को सबसे ऊपर रखा है।
आज भी सवाल वही है: पुतिन इतने लोकप्रिय क्यों हैं?
कई देशों में उन्हें एक सख्त नेता के रूप में देखा जाता है। लेकिन रूस में लंबे समय से उनकी लोकप्रियता का कारण उनका मजबूत प्रशासन, राष्ट्रीय सुरक्षा पर फोकस और ग्लोबल पावर के रूप में रूस को दोबारा स्थापित करने की कोशिशें मानी जाती हैं।
उनकी कहानी बताती है कि कैसे एक गरीब परिवार से आया बच्चा जासूस बना, फिर रणनीतिकार और आखिरकार रूस का सबसे लंबे समय तक रहने वाला राष्ट्रपति।
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