पुतिन–मोदी मुलाकात के बाद राजनीति में गर्मी, राहुल गांधी की जिम्मेदारियों पर उठे सवाल
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की हालिया भारत यात्रा ने देश की विदेश नीति को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन की मुलाकात को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक घटना माना गया। दोनों देशों के बीच वर्षों से रही रणनीतिक साझेदारी को लेकर काफी सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिली। लेकिन इसी बीच देश की आंतरिक राजनीति में इस मुलाकात को लेकर नई बहस शुरू हो गई है।
भारत और रूस के बीच रिश्तों को कई बार “स्थिर और भरोसेमंद” कहा गया है। पुतिन की इस यात्रा के बाद इसे फिर से मजबूत माना जा रहा है। बातचीत में ऊर्जा सहयोग, सुरक्षा, रक्षा और आर्थिक मुद्दे शामिल थे। वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका लगातार मजबूत हो रही है और इस मुलाकात को उसी दिशा में एक अहम कदम के रूप में देखा गया। लेकिन राजनीतिक हलकों में यह मुद्दा केवल कूटनीति तक सीमित नहीं रहा। विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच बयानबाजी बढ़ गई है।
राहुल गांधी की संवैधानिक जिम्मेदारियों पर सवाल
पुतिन–मोदी मुलाकात के बाद सरकार की ओर से विपक्ष, खासकर कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी पर कुछ आरोप लगाए गए। बयानबाजी में कहा गया कि विपक्ष के नेता के तौर पर राहुल गांधी को संवैधानिक जिम्मेदारियों का पालन करना चाहिए, विशेषकर उन आयोजनों में जहां राष्ट्रीय सम्मान और एकता से जुड़ा संदेश जाता है।
सरकार की ओर से यह आरोप सामने आए कि:
- 15 अगस्त 2025, स्वतंत्रता दिवस के दौरान राहुल गांधी लाल किले पर आयोजित समारोह में शामिल नहीं हुए।
- 26 जनवरी 2025, गणतंत्र दिवस की परेड में भी वे मौजूद नहीं रहे।
इन घटनाओं का हवाला देते हुए यह सवाल उठाया गया कि क्या नेता प्रतिपक्ष का यह दायित्व नहीं है कि वे राष्ट्रीय आयोजनों में उपस्थित हों? ये आयोजन देश के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं, जहां समूचा राजनीतिक नेतृत्व एक साथ दिखाई देता है।
सरकार का कहना है कि विपक्ष के नेता का इन आयोजनों में उपस्थित होना एक प्रतीकात्मक संदेश देता है कि देश की पहचान, संविधान और स्वतंत्रता से जुड़े मुद्दों पर राजनीति से ऊपर उठकर एकता दिखाई जाए।
कूटनीति में विश्वसनीयता का महत्व
बयानबाजी के बीच यह बात भी रखी गई कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति भरोसे और विश्वसनीयता पर चलती है। पुतिन और मोदी की मुलाकात इसी विश्वसनीयता का उदाहरण बताई गई। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि भारत की विदेश नीति पिछले कुछ वर्षों में अधिक संतुलित और स्पष्ट हुई है।
दुनिया में चल रहे तनावपूर्ण माहौल, रूस–यूक्रेन युद्ध और बदलते वैश्विक समीकरणों के बीच भारत की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है। ऐसे समय में पुतिन की यात्रा को केवल एक औपचारिक मुलाकात नहीं, बल्कि रणनीतिक बातचीत के रूप में देखा जा रहा है।
कांग्रेस और विपक्ष से जवाब की मांग
सत्ता पक्ष की ओर से यह भी कहा गया कि विपक्ष कई बार राष्ट्रीय मुद्दों को नजरअंदाज करके केवल राजनीतिक बयानबाजी पर फोकस करता है।
कहा गया कि भारत–रूस संबंधों और वैश्विक कूटनीति जैसे गंभीर विषयों पर ध्यान कम दिया जाता है, जबकि राजनीतिक बयान अधिक प्रमुख बन जाते हैं।
इन आरोपों के बाद कांग्रेस से यह अपेक्षा जताई गई कि वह तथ्यों पर अपना रुख स्पष्ट करे। कांग्रेस की ओर से फिलहाल इस मुद्दे पर विस्तृत प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।
राजनीति में बढ़ती तल्खी और जनता की नजर
सियासी माहौल में बयानबाजी नई नहीं है, लेकिन हाल के दिनों में इस पर खास ध्यान दिया जा रहा है क्योंकि देश कई महत्वपूर्ण मोर्चों पर आगे बढ़ रहा है। एक तरफ कूटनीतिक उपलब्धियां हैं, वहीं दूसरी तरफ सियासी आरोप–प्रत्यारोप भी उतनी ही तेजी से बढ़ रहे हैं।
जनता की नजर इस बात पर भी है कि ऐसे बड़े वैश्विक घटनाक्रमों को राजनीति से कितना अलग रखा जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि राष्ट्रीय हित से जुड़े मुद्दों पर राजनीतिक दलों का संयुक्त रुख देश की छवि को मजबूत करता है।
निष्कर्ष
रूस के राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा कूटनीति के लिए एक महत्वपूर्ण घटना रही। भारत–रूस रिश्तों को मजबूत करने के साथ-साथ इस यात्रा ने वैश्विक राजनीति में भारत की भूमिका को भी नई मजबूती दी। लेकिन इस मुलाकात के बाद घरेलू राजनीति में जो नए सवाल उठे, उन्होंने फिर यह दिखा दिया कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर एकमत होना अभी भी भारतीय राजनीति के लिए एक चुनौती है।
राहुल गांधी की राष्ट्रीय आयोजनों में अनुपस्थिति को लेकर उठे सवाल आने वाले दिनों में और बढ़ सकते हैं। वहीं कूटनीति से जुड़े मुद्दे भी राजनीति से हटकर गंभीर चर्चा की मांग करते हैं।
